भगवान राम ने हनुमान जी को मारने के लिए चलाया था ब्रम्हास्त्र! जानिए क्या है पूरी कथा

एक बार भगवान श्रीराम अपने प्रिय भक्त हनुमान के प्राण लेना चाहते थे। पंडित आचार्य सचिन शिरोणि से जानिए इसकी वजह

who can defeat lord hanuman

who can defeat lord hanuman

टीवी पर आपने रामायण जरूर देखी होगी। रामायण में भगवान श्रीराम के जन्म से लेकर उनके वनवास, माता सीता के अपहरण, रावण के वध और अयोध्या लौटने का अद्भुत वर्णन किया गया है। प्रभु श्रीराम के भक्त पवनपुत्र हनुमान जी के बारे में सब जानते ही हैं। हनुमान जी प्रभु राम के प्रिय और सबसे बड़े भक्त थे। हनुमान जी ने छाती चीरकर दिखाया था कि उनके रोम-रोम में श्रीराम बसते हैं। लेकिन एक बार भगवान श्रीराम अपने सबसे प्रिय भक्त हनुमान के प्राण लेने को तैयार हो गए थे। इतनी ही नहीं जब प्रभु राम की हनुमान जी को मारने की सारी कोशिशें नाकाम हो गई तो उन्होंने ब्रम्हास्त्र का प्रयोग भी किया था। 

आप सोच रहे होंगे कि हनुमान जी तो श्रीराम के प्रिय थे तो फिर उन्होंने ऐसा क्यों किया था। इस कथा के बारे में दिल्ली के जाने-माने पंडित आचार्य सचिन शिरोमणि जी ने विस्तार से बताया है।

ऋषि-मुनि हुए थे इक्ट्ठा

lord hanuman image

एक बार देव ऋषि नारद, वशिष्ठ विश्वामित्र और महान ऋषि-मुनि सभा में चर्चा करने के लिए इकट्ठा हुए थे कि क्या राम का नाम प्रभु राम से बड़ा है? सभी विद्वान अपनी-अपनी बात रख रहे थे। इस सभा में पवनपुत्र हनुमान भी मौजूद थे और मौन अवस्था में सबकी बात सुन रहे थे। देव ऋषि नारद का कहना था कि राम का नाम स्वंय प्रभु श्रीराम से भी बड़ा है। यही नहीं उन्होंने भरी सभा में अपनी बात को साबित करने का दावा भी किया। कुछ समय पश्चात सभा समाप्त हो गई और सभी साधु जाने लगे। उसी समय नारद जी ने हनुमान जी को वशिष्ठ विश्वामित्र को छोड़कर सभी ऋषियों का सत्कार करने को कहा। जब हनुमान जी ने उनसे वशिष्ठ विश्वामित्र का सत्कार न करने का कारण पूछा तो उन्होंने कहा कि विश्वामित्र एक राजा हैं। 

हनुमान जी ने वशिष्ठ विश्वामित्र का किया अपमान 

हनुमान जी ने बारी-बारी सभी ऋषियों-मुनियों का आदर सत्कार किया और वशिष्ठ विश्वामित्र को अनदेखा कर दिया। अपना अपमान देखकर विश्वामित्र का क्रोध सातवें आसमान पर पहुंच गया और हनुमान जी को मृत्यु दंड देने का वचन लिया। 

श्रीराम ने गुरू की आज्ञा का किया पालन

हनुमान जी प्रभु राम को सबसे प्रिय थे। वहीं, दूसरी ओर विश्वामित्र उनके गुरू थे। गुरू की आज्ञा का पालन करना राम जी का कर्तव्य था। इसलिए राम जी ने हनुमान को मृत्युदंड देने का निश्चय किया। हनुमान जी को जब पता चला कि प्रभु श्रीराम उन्हें मृत्यु देने के लिए स्वंय आ रहे हैं तो वह कुछ समझ नहीं पाए। तभी उनके पास ऋषि नारद आए और उन्हें राम के नाम का जाप करने को कहा। ऋषि नारद की बात मानकर हनुमान जी भगवान राम का नाम जपने लगे।   

विश्वामित्र ने राम को वचन से मुक्त किया

राम का नाम जपते-जपते वो गहरे ध्यान में चले गए। भगवान राम ने पहुंचकर हनुमान जी पर तीर चलाने आरंभ कर दिए लेकिन बजरंगबली को कोई असर नहीं हुआ। ऐसा देख श्रीराम ने मन में विचार किया कि जो भक्त मेरे नाम का जाप कर रहा है उसका मैं कुछ नहीं बिगाड़ सकता। भगवान राम को गुरू का वचन निभाना था। अपने तीरों को विफल देख इस बार प्रभु राम ने ब्रम्हास्त्र का प्रयोग करने का निश्चय किया। लेकिन ब्रम्हास्त्र भी हनुमान जी का बाल बांका नहीं कर सका। यह सब देख नारद जी ने विश्वामित्र जी को सच बता दिया। इसके बाद विश्वामित्र का क्रोध शांत हो गया और उन्होंने राम को वचन से मुक्त कर दिया। इसके साथ ही ऋषि नारद ने यह सिद्द कर दिया कि राम का नाम स्वंय श्रीराम से बड़ा है। 

अगर आपको यह लेख अच्छा लगा हो तो इसे जरूर शेयर करें। इस तरह के अन्य लेख पढ़ने के लिए जुड़े रहें आपकी अपनी वेबसाइट हरज़िंदगी के साथ। 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *